कटनी, 7 जून 2025:
कटनी जिले के महिला थाना परिसर में 31 मई को कवरेज करने पहुंचे पत्रकारों के साथ पुलिस द्वारा की गई बदसलूकी का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। पत्रकारों ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताते हुए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
घटना उस समय की है जब नगर पुलिस अधीक्षक (CSP) श्रीमती ख्याति मिश्रा और उनके पति का तहसीलदार शैलेन्द्र बिहारी शर्मा से पारिवारिक विवाद सामने आया। इस विवाद में पुलिस की टीम ख्याति मिश्रा के सिविल लाइन स्थित आवास पर पहुँची, जहां कथित रूप से थाना प्रभारी अजय सिंह, एसडीओपी प्रभात शुक्ला और महिला थाना प्रभारी मंजू शर्मा ने परिवार के सदस्यों के साथ मारपीट की।
घटना की सूचना मिलने पर कवरेज के लिए मौके पर पहुँचे पत्रकारों के साथ भी पुलिस का व्यवहार अत्यंत आपत्तिजनक रहा। पत्रकारों का आरोप है कि उन्हें कवरेज करने से जबरन रोका गया और पुलिस अधिकारियों ने उनके साथ अभद्रता की। जब पत्रकारों ने अपना परिचय देने का प्रयास किया तो डीएसपी प्रभात शुक्ला ने कथित रूप से गाली-गलौज की और कवरेज से रोकने का आदेश दिया।
महिला थाना प्रभारी मंजू शर्मा और टीआई कटनी पर भी पत्रकारों ने अपमानजनक भाषा और व्यवहार का आरोप लगाया है। इस पूरी घटना के वीडियो भी पत्रकारों के पास उपलब्ध हैं, जिन्हें उन्होंने मुख्यमंत्री को भेजे गए ज्ञापन के साथ प्रस्तुत करने की बात कही है।
इस गंभीर मामले को लेकर कटनी विधानसभा के विधायक श्री संदीप जायसवाल को पत्रकारों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में दोषी अधिकारियों—एसडीओपी प्रभात शुक्ला, टीआई कटनी, महिला थाना प्रभारी मंजू शर्मा और अन्य पुलिसकर्मियों—के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है।
ज्ञापन सौंपने वालों में वरिष्ठ पत्रकार संजय जैन, अमर ताम्रकार, राजू दसवानी, अनिल तिवारी उर्फ काका, शैलेश पाठक, गोपाल सिंघानिया, अशोक वर्मा, विकास बर्मन, योगेंद्र पटेल और अन्य पत्रकार शामिल रहे।
एकता का प्रदर्शन, अल्टीमेटम जारी:
सभी पत्रकार संगठनों ने एकजुट होकर 7 जून को सरकार को 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया है। पत्रकारों का कहना है कि अगर 8 जून की रात तक दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं की जाती, तो सोमवार 9 जून को दोपहर 2 बजे से पत्रकार अपने संघर्ष की राह पर उतरेंगे।
पत्रकारों ने चेतावनी दी है कि अब उन्हें कोई भी नहीं रोक पाएगा – न क्रिकेट सटोरिए, न गुंडे, न ही पुलिस के दलाल। जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलती, तब तक पत्रकारों की यह लोकतांत्रिक लड़ाई जारी रहेगी।
यह केवल एक घटना नहीं, लोकतंत्र की आवाज़ है
पत्रकारों का कहना है कि यह केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन नहीं है, बल्कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला है। यदि सत्ताधारी वर्ग और प्रशासनिक अमला ही पत्रकारिता को दबाने लगे, तो जनता की आवाज कौन उठाएगा?
[नोट: यह समाचार रिपोर्ट घटनाओं पर आधारित है। पुलिस प्रशासन की प्रतिक्रिया आने पर अद्यतन किया जाएगा।]