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कटनी महिला थाना में पुलिसिया बर्बरता: तहसीलदार परिवार से मारपीट, SP पर हत्या की साजिश के आरोप, मीडिया और बाल अधिकारों का भी हनन

कटनी, मध्यप्रदेश।
शनिवार की रात कटनी का महिला थाना एक ऐसे घटनाक्रम का गवाह बना, जिसने न सिर्फ प्रशासन की संवेदनशीलता पर सवाल उठाए, बल्कि पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर गंभीर शंकाएं भी खड़ी कर दीं। हाल ही में ट्रांसफर हुईं CSP ख्याति मिश्रा के पारिवारिक विवाद ने जबरन पुलिसप्रवेश, मारपीट, मीडिया से बदसलूकी और हत्या की साजिश जैसे आरोपों के रूप में उभर कर सामने आकर पूरे पुलिस तंत्र की साख पर सवालिया निशान लगा दिया है।

पुलिस का शक्ति प्रदर्शन या सत्ता का दुरुपयोग?

CSP ख्याति मिश्रा के स्थानांतरण के बाद उनके पति तहसीलदार शैलेन्द्र शर्मा जब अपने परिजनों के साथ सरकारी आवास से सामान लेने पहुंचे, तभी महिला थाना और कोतवाली पुलिस मौके पर पहुँची। बिना किसी स्पष्ट कानूनी प्रक्रिया के, परिवारजनों को थाने ले जाया गया। यह कार्रवाई किस FIR के तहत हुई, इसका कोई जवाब जिम्मेदार अधिकारियों के पास नहीं है।
एक पारिवारिक विवाद में तीन-तीन पुलिस गाड़ियाँ भेजना, क्या यह बताता है कि मध्यप्रदेश पुलिस अब घरेलू मामलों को आतंकवाद के समकक्ष मानती है? सवाल यह भी उठता है कि FIR के बिना पुलिस को मारपीट और बच्चों तक से बदसलूकी करने का किसने अधिकार दिया?
तहसीलदार और उनके बेटे का आरोप: पुलिस ने की बर्बरता, SP पर हत्या की साजिश का आरोप

महिला थाने पहुंचे तहसीलदार शैलेन्द्र शर्मा ने कैमरे के सामने कहा,

“मेरे परिवार को टारगेट किया जा रहा है। SP अभिजीत रंजन स्वयं साजिशकर्ता हैं। मुझे जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। मेरे चाचा का एक्सीडेंट जानबूझकर कराया गया।”

उनके बेटे विख्यात तिवारी ने रोते हुए कहा,

“पुलिस ने हमें पीटा, मैं बहुत डर गया था।”
यह बयान न केवल पुलिसिया अत्याचार की पुष्टि करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि अब पुलिस बच्चों पर भी रहम नहीं खा रही।
महिला थाना में मीडिया का अपमान, पत्रकार धरने पर
जब पत्रकार कवरेज के लिए पहुंचे तो SDOP प्रभात शुक्ला और अन्य पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया और बदसलूकी की। यह प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला था। कटनी के पत्रकारों ने थाने में ही धरना देकर विरोध जताया, जिसके बाद SDOP को कैमरे पर हाथ जोड़कर माफी मांगनी पड़ी।

यह घटना साबित करती है कि पुलिस अब न सिर्फ आम नागरिकों बल्कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी दबाने का प्रयास कर रही है।
मेडिकल जांच भी बनी तमाशा, बाल आयोग की चुप्पी शर्मनाक

पुलिस द्वारा पीड़ितों को मेडिकल के लिए जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां भी बहस और नोकझोंक जारी रही। बाल आयोग की भूमिका भी सवालों के घेरे में है — एक नाबालिग बालक के साथ मारपीट और डिग्गी में फेंकने के आरोप सामने हैं, लेकिन आयोग की चुप्पी इस पूरे तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर करती है।
क्या CSP होने का मतलब है ‘कानून से ऊपर’ होना?
ख्याति मिश्रा द्वारा FIR दर्ज न करवाने के बावजूद पुलिस ने इतनी बड़ी कार्रवाई कर डाली। क्या सिर्फ इसलिए कि वह एक पुलिस अधिकारी थीं? यह सवाल इस पूरे मामले की निष्पक्षता को संदिग्ध बनाता है।
निष्पक्ष जांच या लीपापोती?
कोतवाली थाना प्रभारी अजय सिंह ने कहा कि मामले को उच्च अधिकारियों को सौंप दिया गया है। लेकिन जब आरोप खुद SP पर हैं, तो उच्च स्तरीय जांच का मतलब क्या रह जाता है? क्या पुलिस खुद ही अपने खिलाफ जांच कर सकती है?
निष्कर्ष: यह केवल एक पारिवारिक विवाद नहीं

यह घटना एक गहरी सच्चाई उजागर करती है — कैसे सत्ता, पुलिस और प्रशासनिक पदों का दुरुपयोग करके आम नागरिकों, यहां तक कि प्रशासनिक अधिकारियों को भी पीड़ित बनाया जा सकता है। मीडिया को डराने, बच्चों तक को निशाना बनाने, और कानून की प्रक्रिया को बाईपास करने की जो मिसाल कटनी में सामने आई है, वह पूरे मध्यप्रदेश के लोकतांत्रिक ढांचे को हिला देने वाली है।

अब जरूरी है

SP अभिजीत रंजन को जांच से हटाकर स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए।

महिला थाना प्रभारी मंजू शर्मा और SDOP प्रभात शुक्ला को तत्काल निलंबित किया जाए।

बाल आयोग को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।

मीडिया और मानवाधिकार संगठनों को इस मामले को उच्च स्तर पर उठाना चाहिए

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