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कटनी विवाद: जब पारिवारिक कलह बन गई प्रशासनिक संकट – एसपी अभिजीत रंजन को क्यों हटाया गया?(कमलेश तिवारी )

मध्यप्रदेश के कटनी जिले में हाल ही में घटित एक प्रकरण ने प्रशासनिक निष्पक्षता, पुलिस तंत्र के दुरुपयोग, और सत्ता के समीकरणों को एक साथ कठघरे में खड़ा कर दिया है। यह घटना केवल एक पति-पत्नी के निजी विवाद की नहीं, बल्कि प्रशासनिक अधिकारों के उपयोग और दुरुपयोग का ज्वलंत उदाहरण बन गई है।

कटनी के एसपी अभिजीत रंजन को मुख्यमंत्री के निर्देश पर हटाना इस बात का संकेत है कि मामला सतही नहीं, बल्कि गंभीर, संवेदनशील और शासन की साख से जुड़ा हुआ है घटना की पृष्ठभूमि: व्यक्तिगत से प्रशासनिक तक

सीएसपी ख्याति मिश्रा, जो कुछ ही समय पहले मैहर जिले के अमरपाटन एसडीओपी के रूप में तबादला हो चुकी हैं, और उनके पति शैलेंद्र बिहारी शर्मा, जो दमोह में तहसीलदार हैं, के बीच करीब एक साल से पारिवारिक तनाव चल रहा था।

28 मई को यह तनाव उस समय प्रशासनिक विवाद में बदल गया जब शर्मा अपने परिजनों (मां, सास-ससुर, चाचा, मामी) के साथ ख्याति के कटनी स्थित शासकीय आवास पर पहुंचे। वहां कथित रूप से ख्याति ने पुलिस बुला ली और पुलिस ने शैलेंद्र को छोड़ बाकी सभी को थाने लाकर हिरासत में ले लिया।

शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि थाने में उनके साथ मारपीट की गई, और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए जिसमें एसपी अभिजीत रंजन पर हत्या करवाने की धमकी देने, मानसिक उत्पीड़न करने, और पत्नी से अलग करने की साजिश रचने जैसे आरोप लगाए गए।

प्रशासन और सत्ता: सीमाएं कहां हैं?

इस प्रकरण ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं:

क्या किसी पुलिस अधिकारी को किसी सहकर्मी के पारिवारिक जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार है?

संविधान और पुलिस नियमावली दोनों स्पष्ट करते हैं कि किसी अधिकारी को व्यक्तिगत झगड़ों में पक्ष नहीं लेना चाहिए। यदि एसपी पर लगे आरोप सही हैं, तो यह अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।

क्या पुलिस थाने को पारिवारिक विवाद निपटाने का मंच बनाया जा सकता है?

पुलिस की जिम्मेदारी अपराध रोकने, कानून व्यवस्था बनाए रखने और निष्पक्ष कार्रवाई करने की है। जब पुलिस थाने को पारिवारिक प्रतिशोध का औजार बना दिया जाए, तो आम जनता का भरोसा डगमगाने लगता है।

वायरल वीडियो और सोशल मीडिया: सबूत या सनसनी?

इस मामले में सोशल मीडिया ने एक निर्णायक भूमिका निभाई। लेकिन सवाल यह है कि क्या सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो पर्याप्त सबूत माने जाएं? अगर प्रशासन केवल वायरल सामग्री के आधार पर निर्णय लेने लगे, तो निष्पक्ष जांच की आवश्यकता कहां बचेगी?

मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप: राजनीति या न्याय?

मुख्यमंत्री द्वारा सीधे हस्तक्षेप कर एसपी अभिजीत रंजन को हटाना, यह दर्शाता है कि मामला गंभीर स्तर तक पहुंच चुका था। लेकिन यह भी विचारणीय है कि अगर यह हस्तक्षेप राजनीतिक दबाव में किया गया, तो क्या यह एक न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला कदम नहीं है?

अगर आरोप सही हैं, तो एसपी को सिर्फ हटाना पर्याप्त नहीं — आपराधिक जांच और विभागीय कार्रवाई भी अपेक्षित है। साथ ही dsp शुक्ला, महिला थाना प्रभारी मंजू शर्मा और उन गैर जिम्मेदार पुलिस पर भी कार्यवाही होना चाहिए जिन लोंगो ने मासूम लडके विख्यात को गाडी की डिग्गी मेँ फेंका,

महिला अधिकारी बनाम पति: क्या समान न्याय की उम्मीद की जा सकती है?

सीएसपी ख्याति मिश्रा महिला अधिकारी हैं। महिला अधिकारियों को सुरक्षा और गरिमा मिलनी चाहिए, लेकिन क्या यह सुरक्षा उनके पति या ससुराल पक्ष के अधिकारों को पूरी तरह कुचल देने का कारण बन सकती है?

यदि पति की शिकायत सही है कि पत्नी के पद का इस्तेमाल कर उन्हें झूठे मामलों में फंसाया गया, तो यह महिला अधिकारों के नाम पर प्रशासनिक दुरुपयोग है — जिसे रोकना आवश्यक है।

जनता की नजर में: कानून सबके लिए बराबर है?

यह घटना आम जनता को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या कानून सबके लिए बराबर है? जब दो प्रशासनिक अधिकारी एक निजी विवाद में उलझते हैं और एक अधिकारी दूसरे के खिलाफ सिस्टम का इस्तेमाल करता है, तो जनता यह मानने लगती है कि “सिस्टम ताकतवर के लिए है, आम आदमी के लिए नहीं।”
समाप्ति: यह घटना एक चेतावनी है

कटनी की यह घटना उन सभी अफसरों और नेताओं के लिए चेतावनी है जो अपने पद का प्रयोग निजी स्वार्थों के लिए करते हैं। यह लोकतंत्र, निष्पक्षता, और पारिवारिक संस्थाओं — तीनों के लिए खतरे की घंटी है।

सरकार को न केवल त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए, बल्कि इस बात की भी व्यवस्था करनी चाहिए कि कोई अधिकारी भविष्य में अपने पद का दुरुपयोग न कर सके — चाहे वह पुरुष हो या महिला।

सुझाव: आगे की राह क्या हो?

इस पूरे मामले की न्यायिक जांच होनी चाहिए।

ख्याति मिश्रा और उनके पति के बीच पारिवारिक विवाद को न्यायालयीन मध्यस्थता के जरिए सुलझाया जाए।

प्रशासनिक पदों पर बैठे अधिकारियों को आचार संहिता की सख्ती से पालना करवाई जाए।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे संवेदनशील मामलों पर सरकार तथ्यात्मक सत्यापन समिति बनाए।

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